Monday, December 31, 2007

आख़िरी ख़त

आज मैंने उसके नाम आख़िरी ख़त लिखा जो कभी नहीं कुछ ऐसा आज तमाम लिखा मौजों की अंजुमन से दिल के मकां को मैंने अनजान सा एक ऐसा पयाम लिखा ...
Friday, December 28, 2007

ग़ज़ल

यहाँ आदमी की नहीं ओहदे की कीमत होती है ज़िंदगी की ख़ुशी से नहीं ग़मों से जीनत होती है देखने मैं हर एक इन्सान अच्छा लगता है मगर बा...
Friday, December 28, 2007

शिक़ायत

उसको मुझसे शिक़ायत है मैंने उसे याद नहीं किया मुझे उससे शिक़ायत है उसने मुझे याद नहीं किया सितारे गवाह बन जाओ चाँद भी उस शक्ल मैं आओ ...
Tuesday, December 25, 2007

माना कि तुम

माना कि तुम किस्मत की लकीरों को नहीं बदल सकती मगर मेरी किस्मत तो हो सकती हो ! माना कि तुम ज़िंदगी का दरख्त नहीं बन सकती मगर ...
Friday, December 21, 2007

कुछ रूठ सी रही है

आजकल ज़िंदगी तन्हा गुज़र रही है कुछ रूठ सी रही है न जाने क्यों - शाहिद अजनबी 
Friday, December 21, 2007

आईने पे ही

देखते देखते उनको न जाने क्या हुआ अपने काजल से आईने पे ही मेरा नाम लिख दिया -शाहिद "अजनबी"
Wednesday, December 19, 2007

इश्क़ और बदनामी

इश्क और बदनामी हमेशा साथ साथ चलते हैं जब मंजिल है एक तो हमराही रस्ते क्यों बदलते हैं आज की दौलत और बस आज का है वजूद वरना कल तो हम सब सि...
Powered by Blogger.