इश्क़ और बदनामी
इश्क और बदनामी हमेशा साथ साथ चलते हैं
जब मंजिल है एक तो हमराही रस्ते क्यों बदलते हैं
आज की दौलत और बस आज का है वजूद
वरना कल तो हम सब सिर्फ हाथ मलते हैं
उसे मिली शोहरत,इज्ज़त और मिल ओहदा
अरे जनाब आप बेवजह क्यों जलते हैं
ज़िंदगी बिखर जाने का गम कैसा है "अजनबी"
हर शाम को सूरज की तरह हम भी ढलते हैं
-शाहिद "अजनबी"
जब मंजिल है एक तो हमराही रस्ते क्यों बदलते हैं
आज की दौलत और बस आज का है वजूद
वरना कल तो हम सब सिर्फ हाथ मलते हैं
उसे मिली शोहरत,इज्ज़त और मिल ओहदा
अरे जनाब आप बेवजह क्यों जलते हैं
ज़िंदगी बिखर जाने का गम कैसा है "अजनबी"
हर शाम को सूरज की तरह हम भी ढलते हैं
-शाहिद "अजनबी"
No comments: