इश्क़ और बदनामी

Wednesday, December 19, 2007
इश्क और बदनामी हमेशा साथ साथ चलते हैं
जब मंजिल है एक तो हमराही रस्ते क्यों बदलते हैं

आज की दौलत और बस आज का है वजूद
वरना कल तो हम सब सिर्फ हाथ मलते हैं

उसे मिली शोहरत,इज्ज़त और मिल ओहदा
अरे जनाब आप बेवजह क्यों जलते हैं

ज़िंदगी बिखर जाने का गम कैसा है "अजनबी"
हर शाम को सूरज की तरह हम भी ढलते हैं

-शाहिद "अजनबी"

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