आख़िरी ख़त
आज मैंने उसके नाम आख़िरी ख़त लिखा
जो कभी नहीं कुछ ऐसा आज तमाम लिखा
मौजों की अंजुमन से दिल के मकां को
मैंने अनजान सा एक ऐसा पयाम लिखा
जाने क्यों सरे रिश्ते तोड़ दिए उस महताब से
आज उस आफ़ताब को आखिरी सलाम लिखा
मेरी लगजिशों पर रिंद तन्कीद करने लगे
और मैंने उसे ज़िंदगी का आख़िरी जाम लिखा
- शाहिद "अजनबी"
जो कभी नहीं कुछ ऐसा आज तमाम लिखा
मौजों की अंजुमन से दिल के मकां को
मैंने अनजान सा एक ऐसा पयाम लिखा
जाने क्यों सरे रिश्ते तोड़ दिए उस महताब से
आज उस आफ़ताब को आखिरी सलाम लिखा
मेरी लगजिशों पर रिंद तन्कीद करने लगे
और मैंने उसे ज़िंदगी का आख़िरी जाम लिखा
- शाहिद "अजनबी"
bahut badhiya! shahai miyan.
ReplyDeletelage raho.........