जज़्बात
जज़्बात के कागज़ से मैंने बुनी थी एक पतंग
सांसों कि डोर से चाह था उसको उडाना
दूर कहीं आसमानों मैं
हवाओं का रुख मेरे हक मैं था
बरसात का अंदेशा न था
मैं और मेरी ज़िंदगी बडे खुश थे उस शाम
मेरे हाथ में पतंग कि डोर और
मेरी ज़िंदगी पकडे थी चरखा
न जाने किस जानिब से
उठा तूफान और जमकर हुई बरसात
मेरी पतंग बिखर चुकी थी
सांसों कि डोर टूट चुकी थी
मेरी ज़िंदगी तूफान के हवाले थी
अब मैं था और मेरी मायूसी
और जज्बात का कागज़ भी चुक गया था !!!
-शाहिद "अजनबी"
सांसों कि डोर से चाह था उसको उडाना
दूर कहीं आसमानों मैं
हवाओं का रुख मेरे हक मैं था
बरसात का अंदेशा न था
मैं और मेरी ज़िंदगी बडे खुश थे उस शाम
मेरे हाथ में पतंग कि डोर और
मेरी ज़िंदगी पकडे थी चरखा
न जाने किस जानिब से
उठा तूफान और जमकर हुई बरसात
मेरी पतंग बिखर चुकी थी
सांसों कि डोर टूट चुकी थी
मेरी ज़िंदगी तूफान के हवाले थी
अब मैं था और मेरी मायूसी
और जज्बात का कागज़ भी चुक गया था !!!
-शाहिद "अजनबी"
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ReplyDeleteek vyatha hai jo shabdon mein jhalaktee hai.Badhai.
ReplyDeletegood one bro....keep it up...!!1
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