आख़िरी ख़त

Monday, December 31, 2007
आज मैंने उसके नाम आख़िरी ख़त लिखा
जो कभी नहीं कुछ ऐसा आज तमाम लिखा

मौजों की अंजुमन से दिल के मकां को
मैंने अनजान सा एक ऐसा पयाम लिखा

जाने क्यों सरे रिश्ते तोड़ दिए उस महताब से
आज उस आफ़ताब को आखिरी सलाम लिखा

मेरी लगजिशों पर रिंद तन्कीद करने लगे
और मैंने उसे ज़िंदगी का आख़िरी जाम लिखा

- शाहिद "अजनबी" 

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