इसी मोड़ पे लहराता हाथ छोड़ आया था
20.08.2012
इसी मोड़ पे लहराता हाथ छोड़ आया था
हाथ क्या, यूं समझो ज़िन्दगी का साथ छोड़ आया था
शकले आसुओं में मुहब्बत की विरासत दे गयी
वरना कब का मैं वो शहर छोड़ आया था
अहदे वफ़ा, रंगे मुहब्बत सब छूट गए
इक दिल था शायद वहीँ छोड़ आया था
ये साँसों का सफ़र है जो दिन-ब- दिन चल रहा है
वरना खुद को तो कब का वहीं छोड़ आया था
बेवजह ढूंढती हैं नज़रें उन आँखों की नमी को
जिसे उसी दिन मैं खुदा के हवाले छोड़ आया था
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
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