फलक पे है धुंआ - धुंआ

Friday, April 24, 2015


02.08.2012
फलक पे है धुंआ - धुंआ हवा है कुछ ऐसी चली
लगता है फिर कोई बेटी बहू बन के जली

खुशी- खुशी रहना, हँस के ग़म को सहना
हुआ उसका उल्टा जो दुआ थी उसको मिली

मुफलिस था बाप उसका इतना जहेज़ कैसे देता
सो आज वो बेटी दुनिया से कूच कर चली

इन जालिमों के हाथ में अब न दे कोई और बेटी
वरना हासिल होगी उसे भी मौत की गली

इस बेवजह रस्म से हासिल कुछ न होगा "अजनबी"
आज एक बेटी है जली कल काँटों की होगी बगिया खिली

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

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