मुझे टूटने दो

Friday, February 12, 2010
मत पुकारे कोई मुझे
नहीं सुनना चाहता
मैं किसी की आवाज़
मुझे धुंध में ही रहने दो
मुझे खुद में गुम रहने दो
नहीं जुरुरत मुझे किसी कंधे की
मैं टूटता हूँ
मुझे टूटने दो।

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

2 comments:

  1. बहुत ही उम्दा प्रस्तुती!!पहली बार आया.अब बार होगा आना....

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