मुझे टूटने दो
मत पुकारे कोई मुझे
नहीं सुनना चाहता
मैं किसी की आवाज़
मुझे धुंध में ही रहने दो
मुझे खुद में गुम रहने दो
नहीं जुरुरत मुझे किसी कंधे की
मैं टूटता हूँ
मुझे टूटने दो।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
नहीं सुनना चाहता
मैं किसी की आवाज़
मुझे धुंध में ही रहने दो
मुझे खुद में गुम रहने दो
नहीं जुरुरत मुझे किसी कंधे की
मैं टूटता हूँ
मुझे टूटने दो।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
बहुत ही उम्दा प्रस्तुती!!पहली बार आया.अब बार होगा आना....
ReplyDeletebhot khoob sir
ReplyDelete