इक तवक्को
ये शाम के धुंधलके
और मुहब्बत के साये
हलकी- हलकी गहराती
ये खुबसूरत रात
छत की मुंडेर पे बैठी
मुहब्बत से लबरेज
वो मासूम सी
दुपट्टे को उमेठ्ती लड़की
सीने में इक खलिश लिए
आंखों में इक गहरा इंतजार
होठों पे बेवजह मुस्कराहट
ज़िन्दगी ने करवट बदली
यादों का दिया मचलने लगा
घर की दहलीज , सफर के रास्ते
ट्रेन की धडधड , फेरीवालों की आवाजें
और किले की दीवारें
ना जाने कब पहुँच गई वो यहाँ
ख़ुद उसको ख़बर नहीं
वो मायूस शाम
रात की शुआओं में तब्दील हो गयी
और आँखें अब भी मुन्तजिर
इस तवक्को पे टिकी हुई
आरिज पे ढलके आंसुओं को
आएगा महबूब हथेली से समेटने ।
- शाहिद " अजनबी "
और मुहब्बत के साये
हलकी- हलकी गहराती
ये खुबसूरत रात
छत की मुंडेर पे बैठी
मुहब्बत से लबरेज
वो मासूम सी
दुपट्टे को उमेठ्ती लड़की
सीने में इक खलिश लिए
आंखों में इक गहरा इंतजार
होठों पे बेवजह मुस्कराहट
ज़िन्दगी ने करवट बदली
यादों का दिया मचलने लगा
घर की दहलीज , सफर के रास्ते
ट्रेन की धडधड , फेरीवालों की आवाजें
और किले की दीवारें
ना जाने कब पहुँच गई वो यहाँ
ख़ुद उसको ख़बर नहीं
वो मायूस शाम
रात की शुआओं में तब्दील हो गयी
और आँखें अब भी मुन्तजिर
इस तवक्को पे टिकी हुई
आरिज पे ढलके आंसुओं को
आएगा महबूब हथेली से समेटने ।
- शाहिद " अजनबी "