सर पे टोपी, हाथों में रुमाल आ गयामुबारक माहे रमज़ान का साल आ गया जंज़ीरों में क़ैद हो
गया इब्लीसऔर दिल में काबे का ख़याल आ गया - मुहम्मद शाहिद मंसूरी
'अजनबी'
चित्र - साभार - गूगल
माहे रमज़ान का साल आ गया
Reviewed by Shahid Ajnabi
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Friday, May 08, 2015
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