पहली बारिश

Friday, April 24, 2015


31.05.2013
पहली बारिश भी क्या क्या कुछ याद दिला जाती है--- वो कागज़ की कश्तियाँ.. वो पानी में छप- छप, कितने ख़ूबसूरत दिन थे वो.. छत पे बैठ के बादलों का इंतज़ार करना. और वो बरस जाएँ.. फिर क्या कहने.. दिल पोर- पोर.. तक खुशियों से उछल पड़ता था.. अब जबकि पहली बारिश भी है.. वही पानी की बूँदें हैं.. वही नमी है.. मगर वो बात न रही... कैफ भोपाली सा'ब की ग़ज़ल याद आती है--
"कैफ" परदेस में मत याद करो अपना मकां
अबकी बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा...
- कैफ भोपाली

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