पहली बारिश
31.05.2013
पहली बारिश भी क्या क्या
कुछ याद दिला जाती है--- वो कागज़ की कश्तियाँ.. वो पानी में छप- छप, कितने ख़ूबसूरत दिन थे वो.. छत पे बैठ के
बादलों का इंतज़ार करना. और वो बरस जाएँ.. फिर क्या कहने.. दिल पोर- पोर.. तक
खुशियों से उछल पड़ता था.. अब
जबकि पहली बारिश भी है.. वही पानी की बूँदें हैं.. वही नमी है.. मगर वो बात न रही... कैफ
भोपाली सा'ब की ग़ज़ल याद आती है-- "कैफ" परदेस में मत याद करो अपना मकां
अबकी बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा...
- कैफ भोपाली
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