मेरे महबूब को खुश रख
18.01.2012
इलाहबाद साहित्य की नगरी है लेकिन कानपुर में
रहकर भी कुछ यूँ लिखा जा सकता है-
ये हंसी में किसने ग़म घोल दिए
ये ख़ुशी में किसने ग़म तौल दिए
मैं चला तो था नेक राह पर
ये बरबादियों के रास्ते किसने खोल दिए
या अल्लाह ! मेरे महबूब को खुश रख
वो अलग बात है उसने वफ़ा के ऐसे मोल दिए
- शाहिद अजनबी
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