मेरे महबूब को खुश रख

Tuesday, April 14, 2015


18.01.2012

इलाहबाद साहित्य की नगरी है लेकिन कानपुर में रहकर भी कुछ यूँ लिखा जा सकता है-

ये हंसी में किसने ग़म घोल दिए
ये ख़ुशी में किसने ग़म तौल दिए

मैं चला तो था नेक राह पर
ये बरबादियों के रास्ते किसने खोल दिए

या अल्लाह ! मेरे महबूब को खुश रख
वो अलग बात है उसने वफ़ा के ऐसे मोल दिए

- शाहिद अजनबी

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