कितने पाकिस्तान
22.06.2013
कई दिनों से कमलेश्वर
साहब की 'कितने पाकिस्तान' पढ़
रहा था.. इस रचना के बारे में क्या लिखा जाए. मेरे शब्द बहुत छोटे पड़ जाएँ शायद..
.. इतना तो मैंने
महसूस कर लिया.. जितने दिन पढ़ी इस किताब को.. उतना सच जी लिया.. जिन्ना.. नेहरु..
गाँधी ..और भी ऐसे नाम जो मैंने शायद न सुने थे.. उनकी भी सच्चाई जान ली.. बंटवारे की जो टीस आज
तक अवाम में है.. वो कमलेश्वर सा'ब के माध्यम से जी ली. पानी की तरह साफ़ कर दिया. सब कुछ लेखक ने.. वो दर्द , वो ग़म सब तो अहसास करा दिया. ये एक रचना है वो अपनी जगह.. लेकिन बंटवारे की सच्चाई पढना हो तो इस किताब के रास्ते से जरुर होकर गुजरें.. ... वैज्ञानिकों की भी ऐसी सच्चाईयां उजागर की हैं.. जो काबिले गौर है.. और ताज्जुब से भरी हैं.. अफ़सोस होता है ऐसे पढ़े लिखे वैज्ञानिकों पर... ....
दुष्यंत जी की लायनें... जो लेखक के मन पर तेरी थी.. जस की तस उतार रहा हूँ-
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मारें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए..
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