31.12.2013
आज से ठीक 14
साल पहले मैंने लिखावट का दामन थामा था,
और वो बखूबी जस का
तस है.. वक़्त ने खूब
लिखवाया.. कभी कविता की गंगा बही,
कभी
नज्मों का सागर
बहा.... कभी ग़ज़ल की सुराही का लुत्फ़ लिया.. कभी व्यंग्य लिख के मन की खीज को लफ़्ज़ों में
उतारा.. कुछ दिल के अजीज़ अहसासों से फ़साने बने....उन्हें लफ़्ज़ों का जामा
पहनाया.... और काग़ज़ पे उतारने की कोशिश भर की.. ये कोशिशें बा-दस्तूर जारी हैं. ..और
इंशा- अल्लाह जारी रहेंगी. ...
बड़ी
ख़ुशी के लम्हे थे वो जब मैंने कविता के नाम पे कुछ आड़ी- तिरछी पंक्तियों को जोड़कर एक कोशिश की थी कुछ लिखने
की.... और वो टेढ़ी मेढ़ी पंक्तियों ने एक
कविता की सी शक्ल अख्तियार कर ली थी.. ..उन्हीं ख़ुशी के पलों के साथ.पन्नों को रंगने में लगा हूँ.. जो
कुछ भी उभर के आ रहा है.. वो आप को सौंपता
हूँ...बहुत पेज बनाये, बहुत ब्लॉग बनाये, आज
सोचा इस मुबारक सालगिरह पर
कुछ एक कोशिश करते हैं--
दामने कलम है हाथ में
कुछ अहसास हैं साथ में
शायद चंद दिलों को झिंझोड़ दे
जिसे लिखावट का नाम दूँ..
सो
लफ़्ज़ों को तोड़ता हूँ,
रदीफ़- काफिया जोड़ता हूँ
यूँ समझो दिल की उलझन को
काग़ज़ पे उतारता हूँ
कोई नज़्म कहता है,
कोई ग़ज़ल कहता है..
इसी कोशिश में लगे हुए
चंद साल गुज़र गए
कुछ और बरस बीत जाएँ...
बस खुदा से इतनी गुज़ारिश करता हूँ
कोशिशों से पैदा हुए मिसरे दिलों में रह
जाएँ..
-
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
दामने कलम है हाथ में
Reviewed by
Shahid Ajnabi
on
Sunday, April 12, 2015
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