इश्के शहर
देखा जाए तो हर दिन मुहब्बत का है, जिस दिन में मुहब्बत नहीं वो दिन कैसा ? शायद हम और आप ऐसी दुनिया की कल्पना भी नहीं कर सकते , जहाँ मुहब्बत न हो, प्यार न हो, अहसास न हों, संवेदनाएं न हों. और अगर एक दिन मुक़र्रर कर भी दिया प्यार के लिए तो ठीक सही. अगर एक ख़ास दिन के बहाने , हम प्यार के अहसास को तरोताजा कर रहे हों , तो आइये उन अहसासों को जिंदा किया जाए और लवों पे मुस्कराहट आती है अगर इस दिन से तो चलो मनाते हैं वैलेन्टाइन डे. रही बात प्यार के दुश्मनों की वो अज़ल (जिस दिन से दुनिया बनी) से रहे हैं और शायद हमेशा रहेंगे. इस छोटी सी ज़िन्दगी में अगर आपने चार पल के लिए भी ये अहसास जी लिए तो तमाम उम्र आपका दिन ज़िन्दा रहेगा.
मुहब्बत परस्तों ! अपने आसपास मुहब्बत का ऐसा शहर बसा के तो देखो, जिसकी गलियां प्यार की हों, जिनमें खुशबुएँ अहसासों की हों जिसकी छतें प्यार से लबरेज हों और दीवारों से इश्क़ की खुशबु आने लगे फिर तो आप जरुर ऐसे शहर में हैं जिसे हम इश्के शहर कह सकते हैं.फिर तो जरुर कोई ताहिर फ़राज़ साब की ये नज़्म गुनगुना रहा होगा
बहुत खुबसूरत हो तुम
कभी जो मैं कहूं मुहब्बत है तुमसे
तो मुझको खुदारा ग़लत मत समझना
की मेरी जरूरत हो तुमबहुत …………….
है फूलों की डाली ये बाहें तुम्हारी
है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काटें हों सब अपने दामन मैं रख लूँ
सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
देखो किसी से दिल न लगाना
की मेरी अमानत हो तुम
बहुत ………..
है चेहरा तुम्हारा की दिन है सुनहरा
उस पे ये काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाजुक महकता बदन है
ये लव हैं तुम्हारे की खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फें तो शरमाये बादल
जमाना भी देखे तो हो जाए पागल
वो पाकीजा मूरत हो तुमबहुत …………
जो बन के कली मुस्कराती है अक्सर
शबे हिज्र मैं जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शायर को दे जाए पहलू ग़ज़ल के
छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए
वो पहली मुहब्बत हो तुमबहुत ………………
- Shahid Ajnabi
चित्र - साभार - गूगल
मुहब्बत परस्तों ! अपने आसपास मुहब्बत का ऐसा शहर बसा के तो देखो, जिसकी गलियां प्यार की हों, जिनमें खुशबुएँ अहसासों की हों जिसकी छतें प्यार से लबरेज हों और दीवारों से इश्क़ की खुशबु आने लगे फिर तो आप जरुर ऐसे शहर में हैं जिसे हम इश्के शहर कह सकते हैं.फिर तो जरुर कोई ताहिर फ़राज़ साब की ये नज़्म गुनगुना रहा होगा
बहुत खुबसूरत हो तुम
कभी जो मैं कहूं मुहब्बत है तुमसे
तो मुझको खुदारा ग़लत मत समझना
की मेरी जरूरत हो तुमबहुत …………….
है फूलों की डाली ये बाहें तुम्हारी
है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काटें हों सब अपने दामन मैं रख लूँ
सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
देखो किसी से दिल न लगाना
की मेरी अमानत हो तुम
बहुत ………..
है चेहरा तुम्हारा की दिन है सुनहरा
उस पे ये काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाजुक महकता बदन है
ये लव हैं तुम्हारे की खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फें तो शरमाये बादल
जमाना भी देखे तो हो जाए पागल
वो पाकीजा मूरत हो तुमबहुत …………
जो बन के कली मुस्कराती है अक्सर
शबे हिज्र मैं जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शायर को दे जाए पहलू ग़ज़ल के
छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए
वो पहली मुहब्बत हो तुमबहुत ………………
Happy Valentine's Day - 16
- Shahid Ajnabi
चित्र - साभार - गूगल
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