किताबें झाँकतीं हैं
20.03.2013
किताबें झाँकतीं हैं बंद अलमारी के शीशों
से ,
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं
जिनकी सोहबत में कटा करती थी शामें ....
- गुलज़ार
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं
जिनकी सोहबत में कटा करती थी शामें ....
- गुलज़ार
सफर तवील है तू मायूस न हो मैं दूर सही मेरी दुआएं तेरे साथ हैं
एक दुनिया ऐसी भी जहाँ सिर्फ , ग़ज़ल, नज़्म , दर्द और पागलपन ...
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