किताबें झाँकतीं हैं

Thursday, April 30, 2015


20.03.2013
किताबें झाँकतीं हैं बंद अलमारी के शीशों से ,
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं
जिनकी सोहबत में कटा करती थी शामें ....
- गुलज़ार

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