फाकिर सा'ब के लफ्ज़, चित्रा की जादुई आवाज़ में -
21.11.2011
ज़िन्दगी तुझको जिया है कोई अफ़सोस नहीं
ज़हर खुद मैंने पिया है कोई अफ़सोस नहीं
मैंने मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया में
बस यही जुर्म किया है कोई अफसोस नहीं
मेरी क़िस्मत में जो लिक्खे थे उन्हीं काँटों से
दिल के ज़ख्मों को सिया है कोई अफ़सोस नहीं
अब गिरे संग कि शीशों की हो बारिश "फाकिर"
अब कफ़न ओढ़ लिया कोई अफ़सोस नहीं
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