दरकता लोकतंत्र

Sunday, August 13, 2017
    आप जो हर रोज़ लोकतंत्र - लोकतंत्र कहते हैं मुझे समझ नहीं आता. आप मुझे अजीब कह सकते हैं .आपके पास हक़ है, अधिकार है. बिल्कुल कहिये. किसी भी विचारधारा को मान सकते हैं आप लेकिन दूसरी धाराओं को पढ़ लेने में कोई बुराई नहीं है. इनसे दिमाग के दरवाजे खुलते हैं और आप को सोचने समझने की शक्ति में इजाफा होता है. जय समाजवाद कहने में दिक्कत नहीं है लेकिन जब आप जय अखिलेश कहने लगते हैं तब आप समाजवाद की बात नहीं कर रहे होते हैं. किसी ख़ास की बात करने लगते हैं.
कुर्सी ही पहली पकड़ है और शायद अंतिम सत्य है आपकी नज़र में. आप किसी भी पार्टी को ले सकते हैं. लोकतंत्र नाम की चिड़िया से शुरू हुई आम आदमी पार्टी में आज केजरीवाल ही सब कुछ हैं आपने जरा सा भी कुछ बोला पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. तब लोकतंत्र नामक चिड़िया अपने पेड़ से उड़कर कब आसमान के ख़ास सितारे के पास पहुँच जाती है . आपको पता नहीं चलता.
जय श्री राम में बुराई नहीं है लेकिन जब आप हर – हर मोदी कहने लगते हैं तब इस लोकतंत्र में बू आने लगती है और तब वो कम से कम लोकतंत्र तो नहीं रह जाता. जब पार्टी आलाकमान ही सब कुछ हो जाता है , जब राहुल गांधी एक बड़े गरीबों के नेता हो जाते है. जब पार्टी के कुछ नेता सोनिया गांधी के इशारे का इंतज़ार करते हैं. उसके बाद ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पाते हैं. जब आप तमिल नेताओं को घर में पूजने लगते हैं . यहाँ लोकतंत्र की समाप्ति की आवाज़ आने लगती है. जब आप दलितों की लड़ाई को मुख्य मुद्दा न मानकर मायावती को मसीहा कहने लग जाते हैं. तब लोकतंत्र की बात भटकती हुई नज़र आती है.
जब आप वोट देने के लिए अपनी समझ का उपयोग न करके बुखारी के फरमान का इंतज़ार करते हैं. उसी अनुसार लाल या नीला बटन दबा आते हैं तब आप सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा नज़र नहीं आते हैं, ठेली हुई भीड़ ही नज़र आते हैं जिसकी नकेल का एक सिरा बुखारी के हाथों में नज़र आता है.
अगर आपको सरकार की नीति ठीक नहीं नहीं लगती तो बोलिए, लिखिए, कहिए. यक़ीन मानिए आप को किसी पार्टी का समर्थक होने पे शक नहीं किया जाएगा. लोकतंत्र में हर एक की अपनी शक्ति है वही उसका वजूद है. अगर आप किसी एक जगह से कण्ट्रोल होंगे तो अपनी शक्ति खो रहे होते हैं अपनी अभिव्यक्ति, अपनी आज़ादी से दूर हो रहे होते हैं. अपने विवेक से दूर हो रहे होते हैं. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे – धीरे हो रही होती है. अगर आप हाईड्रोजन हो जाते हैं और आपका साथी ऑक्सीजन हो जाता है मिलकर जब ये पानी तैयार होता है जो गन्दा भी हो सकता है. ऐसे पानी का कोई माने नहीं रह जाता.
अगर आप अपनी समय की घड़ी की सुईयों को पीछे करेंगे तो आप पायेंगे कि गांधी ने तो ऐसे समाज की कल्पना नहीं की थी. जैसा समाज आज हम बन रहे हैं या बना रहे हैं.
यहाँ आकर तर्क, वितर्क समाप्त हो जाता है क्योंकि आप नेता की भक्ति में गीत गाने लगते हैं. वाद – विवाद होना चाहिए, संवाद होना चाहिए. आप के विवेक का उपयोग होना चाहिए. इस पोजीशन पे आकर आप लोकतांत्रिक सरकार के मालिक होते हुए मजबूत सेवक चुनने के बजाए एक डिक्टेटर चुन रहे होते हैं. आप को पालना है तो ये मुगालता पाले रखिए.
शाहिद अजनबी

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