Monday, November 17, 2008

इक तवक्को

ये शाम के धुंधलके और मुहब्बत के साये हलकी- हलकी गहराती ये खुबसूरत रात छत की मुंडेर पे बैठी मुहब्बत से लबरेज वो मासूम सी दुपट्टे को ...
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