Saturday, January 05, 2008

जज़्बात

जज़्बात के कागज़ से मैंने बुनी थी एक पतंग सांसों कि डोर से चाह था उसको उडाना दूर कहीं आसमानों मैं हवाओं का रुख मेरे हक मैं था बरसात का अ...
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